जब गरीबी घर की दहलीज पर दस्तक देती है तो पेट पालने के आगे ज्यादातर लोगों के सपने और उन्हें पूरा करने का जुनून घुटने टेक देता है। ऐसे कुछ चुनिंदा लोग ही होते हैं जो तमाम चुनौतियों के बावजूद अपने जुनून को जिंदा रख पाते हैं और सफलता पाकर मिसाल पेश करते हैं। देश की ओर से सेपक टकरा में पहला ऐतिहासिक मेडल जीतने में योगदान देने वाले हरीश कुमार भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं।
हाल ही में हुए एशियाई खेलों में हिस्सा लेकर मेडल जीतने के बाद उनकी जिंदगी वापस पुराने ढर्रे पर लौट आई है और वह परिवार के गुजारे के लिए चाय की टपरी में पिता के साथ चाय बेंच रहे हैं। एएनआई से बात करते हुए हरीश कुमार ने कहा, 'मेरा परिवार बहुत बड़ा है और कमाई करने के साधन सीमित हैं। परिवार को सहारा देने के लिए मैं चाय की दुकान में अपने पिता के साथ काम करता हूं और 2 बजे से 6 बजे तक चार घंटे खेल की प्रैक्टिस भी करता हूं। भविष्य में परिवार के बेहतर भविष्य के लिए अच्छी नौकरी करना चाहता हूं।'
उन्होंने अपने संघर्ष और सेपक टकरा खेल पर बात करते हुए कहा, 'मैंने यह खेल साल 2011 में खेलना शुरु किया था। मेरे कोच हेमराज मुझे इस खेल में लेकर आए। जब कोच ने मुझे देखा तो मैं टायर से खेल रहा था और इसके बाद वह मुझे स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में ले गए। इसके बाद मुझे हर महीने किट और फंड मिलने लगा। मैं देश को और ज्यादा मेडल दिलाने के लिए रोजाना प्रैक्टिस करता हूं।'
हरीश की मां ने भी बेटे की खेल की दुनिया, सफलता और परिवार के संघर्ष को लेकर बात की। उन्होंने कहा, 'हमने बड़े संघर्ष से अपने बच्चों को बड़ा किया है। हरीश के पिता ऑटो ड्राइवर हैं और साथ में हमारी एक चाय की दुकान है। जिसमें पति के साथ बेटा भी काम करता है। मैं अपने बेटे की सफलता में सहयोग के लिए सरकार और कोच हेमराज का धन्यवाद देती हूं।'
हाल ही में हुए एशियाई खेलों में हिस्सा लेकर मेडल जीतने के बाद उनकी जिंदगी वापस पुराने ढर्रे पर लौट आई है और वह परिवार के गुजारे के लिए चाय की टपरी में पिता के साथ चाय बेंच रहे हैं। एएनआई से बात करते हुए हरीश कुमार ने कहा, 'मेरा परिवार बहुत बड़ा है और कमाई करने के साधन सीमित हैं। परिवार को सहारा देने के लिए मैं चाय की दुकान में अपने पिता के साथ काम करता हूं और 2 बजे से 6 बजे तक चार घंटे खेल की प्रैक्टिस भी करता हूं। भविष्य में परिवार के बेहतर भविष्य के लिए अच्छी नौकरी करना चाहता हूं।'
उन्होंने अपने संघर्ष और सेपक टकरा खेल पर बात करते हुए कहा, 'मैंने यह खेल साल 2011 में खेलना शुरु किया था। मेरे कोच हेमराज मुझे इस खेल में लेकर आए। जब कोच ने मुझे देखा तो मैं टायर से खेल रहा था और इसके बाद वह मुझे स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया में ले गए। इसके बाद मुझे हर महीने किट और फंड मिलने लगा। मैं देश को और ज्यादा मेडल दिलाने के लिए रोजाना प्रैक्टिस करता हूं।'
हरीश की मां ने भी बेटे की खेल की दुनिया, सफलता और परिवार के संघर्ष को लेकर बात की। उन्होंने कहा, 'हमने बड़े संघर्ष से अपने बच्चों को बड़ा किया है। हरीश के पिता ऑटो ड्राइवर हैं और साथ में हमारी एक चाय की दुकान है। जिसमें पति के साथ बेटा भी काम करता है। मैं अपने बेटे की सफलता में सहयोग के लिए सरकार और कोच हेमराज का धन्यवाद देती हूं।'
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